Sunday 8 May 2016

वो मैं ही था ।

गरजते बादलों में , जो घुप्प अँधेरी रात थी , वो मैं ही था ।
बहा ले जाने को व्याकुल , जो बरसात थी , वो मैं ही था ।।
महफ़िलों , नुमाइशों , औ' जश्न में दुनिया रही ;
परेशानियों में , तल्ख़ जो हालात थे , वो मैं ही था ।।
कहकहों में कटी शाम तेरी , हलचलों में दिन ;
उचटती नींद के ,जो अनमने ख़यालात थे, वो मैं ही था ।।
तजुर्बादार रहे लोग तेरे , सुलझे हुए सलाह ;
हमारे बीच , जो उलझे हुए , सवालात थे, वो मैं ही था ।।
हज़ार दाँव चली ज़िंदगी , किस्मत हज़ार चाल ;
लाचार सी पसरी हुई , जो बिसात थी , वो मैं ही था ।।
                      # राजेश पाण्डेय

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