Sunday 8 May 2016

वो मैं ही था ।

गरजते बादलों में , जो घुप्प अँधेरी रात थी , वो मैं ही था ।
बहा ले जाने को व्याकुल , जो बरसात थी , वो मैं ही था ।।
महफ़िलों , नुमाइशों , औ' जश्न में दुनिया रही ;
परेशानियों में , तल्ख़ जो हालात थे , वो मैं ही था ।।
कहकहों में कटी शाम तेरी , हलचलों में दिन ;
उचटती नींद के ,जो अनमने ख़यालात थे, वो मैं ही था ।।
तजुर्बादार रहे लोग तेरे , सुलझे हुए सलाह ;
हमारे बीच , जो उलझे हुए , सवालात थे, वो मैं ही था ।।
हज़ार दाँव चली ज़िंदगी , किस्मत हज़ार चाल ;
लाचार सी पसरी हुई , जो बिसात थी , वो मैं ही था ।।
                      # राजेश पाण्डेय

Sunday 1 May 2016

शिकवा , गिला

शिकवा , गिला कुछ भी न की , कि बेआबरू होता था वो ।
पर रहा ये इल्ज़ाम सर पर ," कि हर बात पे रोता था वो "।।
बंदिशें इतनी सहीं , कि मैं कभी " मैं " न रहा ;
पर लोग उठने तक जनाज़ा , पूछा किये -- " कैसा था वो ? "
या रब तू मुझसे पूछ मत , हिसाब मेरी ज़िंदगी का ;
अच्छा रहूँ इस फ़ेर में , गुज़ारी जो , धोखा था वो ।।
उस शाम मेरी ज़ब्ते- मोहब्बत , ज़ंजीरे जुनूँ थी , कुछ न था ;
आज पछताता हूँ कि , " हाय इक मौका था वो । "
नाश में हलचल हुई इक , बंद पलकें नम हुईं ;
क्यूँ कफ़न सरका के मेरा ,बेसाख़्ता चौंका था वो ।
                                    # राजेश पाण्डेय

मंज़िल रही न कोई

मंज़िल रही न कोई , क़दमों को राह में ।
चल पड़ी है साँसें , बेनामी सी चाह में ।।
जिस्म भी अब रूह का ताबूत बन चुका है ;
दिल दफ़्न है ख़ामोशियों की क़ब्रगाह में ।।
आँखों में आँच लेकर , सपनों की चिता की ,
ढूँढता हूँ ख़ुद को , सबकी निगाह में ।।
ज़िंदगी में वैसी , तबीअत नहीं रही अब ;
शामिल करूँ मैं कैसे , तुझको निबाह में ।।
ख़्वाहिशें , हैरानियाँ , कमबख़्त से ख़याल ;
कुछ दिल में रह गईं हैं , कुछ निकलीं हैं आह में ।।
                       # राजेश पाण्डेय

तड़प आँसुओं की

तड़प आँसुओं की , मुहताज कब हुई ।
दिल के टूटने पर , आवाज़ कब हुई ।।
तुझको कहाँ ख़बर कि हम बेचैन बहुत हैं ;
दिल के इस हालात पर , बात कब हुई ।।
अपने ही ज़ख़्म पे हूँ मलता , लाचारियों का नमक ;
पर ऐसे किसी वक़्त , मुलाकात कब हुई ।।
झुलसी हो ज़मीं जैसे , फटते हैं होंठ प्यासे ;
सहरा के मुसाफ़िर पे , बरसात कब हुई ।।
                   
                              # राजेश पाण्डेय