Tuesday 27 August 2013

स्पर्श के सोपान

                                                               
                                                     स्पर्श के सोपान
           अपनेपन से महकी मुस्कुराहटों का एक मुकम्मल सिलसिला रहा और उससे पनपे यक़ीन ने जब तेरी नाज़ुक हथेली मेरे भारी पंजों की जवाबदेह गिरफ़्त में सौंपी, तो वो हमारा पहला स्पर्श था .....और बस उतना ही , और कुछ नहीं !
         फिर बरस बीते , सानिध्य के अविस्मरणीय पल जिये , और एक सुबह तेरी आँखों से दो बूँद नमी हटा कर मैंने साधिकार तेरा माथा चूम लिया था ......पर वो भी बस उतना ही, उससे परे कुछ भी नहीं ।
       इन्द्रजाल सी भावनाओं की इस रवानी का एक पूरा दौर गुज़रा , फिर हमारे दरमियाँ गहराते रिश्ते में , कुछ अपनों की फ़िक़्रमंद दख़ल से हम सहमने लगे ! इल्ज़ाम बस इतना था कि समाज के स्थापित मापदंडों से कुछ ज़ियादा वक्त हमने साथ गुज़ारना चाहा , कसूर इतना कि नज़दीकियों की हमने कोई सीमित परिभाषा नहीं गढ़ी ; और मजबूरन हमने कुछ लम्हे चुराये , अपने लिए !! शायद उसी किसी दौर में एक शाम हमने एक दूसरे की आँखों में कुछ गहराई का इशारा पढ़ा और होंठ नज़दीकियाँ पाकर सकुचाकर रह गए थे ! अब ये रिश्ते का स्वाभाविक पक्ष था या समाज की अवांछित बाधाओं से आहत कुछ और ????? मेरे लिए यह अब भी अनुत्तरित है , पर तुम भी मानोगी कि वो स्पर्श की मधुरतम् प्रतिध्वनि थी ! पर बस उतना ही ,आगे कुछ और नहीं !
       सानिध्य और स्पर्शों के निहायत सूक्ष्म  संकेतों पर तपा और पनपा हमारा रिश्ता आज शब्दों  और संदेहों की निर्मम शल्य चिकित्सा में ठंडा पड़ा है ......जहरीले प्रश्नचिह्नों की शरशैया पर इच्छामृत्यु को शापित ! मज्बूरी ऐसी , की जब तलक इस रिश्ते पे गहराए रहस्यों की सारी गुत्थियाँ सुलझा ना लूँ , ये दम भी तो नहीं तोड़ सकता !
       अवचेतन के नीले अनंत में तैरते ख़्वाबों के इन्द्रधनुषी बादलों का तिलिस्म टूट चुका है !भावनाओं का निष्छल प्रवाह दिल के इर्द गिर्द कहीं सशंकित थमा हुआ है , आँखों में घड़ी- घड़ी उतर आने वाले संवेदनाओं के सोते लुप्त हो रहे हैं ! मैं रिश्तों के सारे अनसुलझे धागों को समाज की पुरातन पोटली में लपेटकर चल पड़ा हूँ , निर्मम यथार्थ की राह !! कभी ज़िम्मेदारी के काँधों पर पोटली बदलता तो कभी सिर पर बोझ की तरह रख कर हठात् लड़खड़ाता ! स्पर्शों के मर्म को दिल की कंदराओं में सुन्न करता !!
                                                                                                                      #  राजेश पाण्डेय

2 comments:

  1. सुरसुराती और मरमरी, सुन्‍न को भी झंकृत करती संवेदनाएं.

    ReplyDelete
  2. Jahe naseeb Rahul bhaiya....for sweet chosen words of appreciation.

    ReplyDelete