Friday 21 December 2012

दिल दहलाती दिल्ली !!


It is entirely in keeping with Indian tradition and culture to blame and shame the victim of rape rather than the rapist.



क्यूँ आज उस कराहती मर्दानी को देखिये ?
क्यूँ दरिंदगी की दिल्ली - निशानी को देखिये ?
होता है यह तमाशा , हर दौर , हर शहर :-
जाईए  आप अपनी परेशानी को देखिये !!
बीमार मर्दानगी से मग़रूर यहाँ लोग ;
शराफ़त की नपुंसक जवानी को देखिये !!
क्यूँ रात में भी बेटियाँ महफ़ूज़ चले कोई ?
सड़कों पर पसरी हैरानी को देखिये !!
जड़ते हैं नसीहत और बहकते नशे में हैं ;
आँखों के मरते हुए पानी को देखिये !!
" नर्क " को भी क्या जगह दें , मिसाल में :-
शर्मसार होती राजधानी को देखिये !!

                               # राजेश पाण्डेय 





Tuesday 27 March 2012

हम सब victim

हम सब victim 
समस्या सिर्फ़ ये नहीं है :
कि तुम्हारा भरोसा क्यूँ टूटा ?
पर सवाल ये भी ज़रूर है ;
कि तुमने :
ऐसा भरोसा गढ़ा ही क्यूँ ?
                                   मेरी निजता के आग्रह से उपजे ;
                                    प्रश्न चिह्नों पर
                                    तुम अपना निष्कर्ष थोप दो ;
                                    यह तो मुझे भी ग्राह्य  नहीं !!
पर दोष तुम्हारा  भी नहीं है ;
( अपने विश्वास के दायरे में )
पर इतना तजुर्बा मेरा भी है :
कि समाधान :
शंकाओं :
और उस पर त्यौरियों के पलटवार
में कभी नहीं रहा !!
This is a strange world : where everyone is a victim ; for no one's fault.
                                                                                              #   RAJESH PANDEY