
सावन : एक प्रेम गीत
बहकी सी हवा , इक शोख घटा ;
घड़ - घड़ गरजे दीवानी रे !
नील गगन को आज सताते ,
बादल , बिजली , पानी रे !!
बूँदें , धड़कन - धड़कन गिरतीं ,
छाती : घर का आँगन !!
सावन ने ये क्या कर डाला ?
अपनी भरी जवानी रे !!
हरियाली का यौवन पाकर ,
धरती क्यूँ सकुचाये ?
केले के चिकने पत्तों पर ,
बूँदें : पानी पानी रे !!
सूरज को भी लील चुकी है ,
काली , गहरी , घटाएं ;
भरी दुपहरी , स्वप्न - साँझ का ;
निश्छल प्रेम कहानी रे !!
अलसाए से पेड़ खड़े हैं ,
छेड़ - छाड़ सी लगी झड़ी !
धरती पर खनखन करती ,
ये कैसी चंचल वाणी रे !!
कुछ गीत लिखूँ , कुछ राग रचूँ ,
कुछ बात करूँ मैं ख़ुद से !!
चाय की चुस्की दिल तक जाती ,
मन को सूझे शैतानी रे !!
# राजेश पाण्डेय