Friday 17 June 2011

एक परवान चढ़ते सपने का उड़न ताबूत


एक परवान चढ़ते सपने का उड़न ताबूत  !!

जब विचारों की उजास, हमें साफ़गोई अभिव्यक्ति की पीड़ा पीने का साहस दे दे , तब संभव है कि गुज़श्ता उम्र की बेजा भूलें सिर्फ भावनात्मक प्रतिध्वनि का स्वांग ना रचें ! नंगे हुए सच से आनंद कितना मिलता है यह तो अनुभव नहीं , पर सहमा हुआ साहस भी सुकून बहुत पाता है ! नफा- नुकसान के बही खाते से परे आज एक दबा आक्रोश , अपने भीतर ही ज्वालामुखी के विस्फोट सा हो जाना चाहता है !

मोह बुरा नहीं ; स्वार्थ गुनाह नहीं ; पर पाकीज़गी का भ्रम , ईमान का झांसा , परम सत्य के सामने कब बेआबरू हो जाएँ और प्रेम को भूख  और त्याग को महज़ अवसर भुनाने की कवायद साबित कर दें कहना कठिन है ! नए पंखों से सपनों की उड़ान भरी थी , पर जीवन तो एक उड़ते ताबूत का भ्रम देता है ! क्या पंखों को भरोसा कम दंभ ज्यादा था ? या उड़ान में सहजता कम बेक़रारी अधिक थी ?

कौन जाने यह उड़ना था भी या नहीं ? सापेक्षिक रूप से तो कहीं कोई ऊँचाई होती भी नहीं !
                                              #  राजेश पाण्डेय

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