Sunday 29 May 2011

दर्द का दोगलापन

दर्द का दोगलापन : एक व्यंग्य 

हाँ मैंने खरी खोटी सुनाई थी :-
पर पूरा यक़ीन था ;
कि तुम समझोगी :-
" मेरी हताशा !! "

पर अब तुम्हे सुबकते देख
मैं ख़ुद को छला ;
महसूस कर रहा हूँ !
दोस्तों :
" क्या तुम्हारा भी भरोसा :
कभी इस तरह टूटा है ?"

ना जाने ये लड़कियां
कब mature होंगीं ?


हाँ तुमने " तथ्य " छिपाए थे :
क्यूँकि तुम्हें पूरा यक़ीं था
" कि मैं नहीं समझूँगा !!"
पर अब मेरी शिकायत :
तुम्हें " आरोप " का सदमा देती है !

ना जाने ये लड़के
कब परिपक्व होंगे ?

                           # राजेश पाण्डेय

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