Saturday 30 April 2011

अपना अपना पिंजड़ा

अपना अपना पिंजड़ा 
अपने लिए कुछ चाहना
अपने आप को छलना है
क्यूँकि
ये चाहत तो टूटेगी
ज़रूर टूटेगी
और तुम्हारे भीतर ही टूटेगी ।
यह जीवन का
एक सहज सिद्धांत है
अपना- मेरा- मैं
कभी भी नहीं चल सका ।
हम अनजाने ही
सुप्त पड़े आँसुओं के समंदर को
मथ जाते हैं
और तड़पते हैं
दोष
दूसरों पर मढ़ते हैं ।
मै जानता था
तुम भी समझती थीं
मुश्किलें
फ़ासिले
शर्तें
मजबूरियाँ
पर हम दोनों
लाँघ जाना चाहते थे - यह सब
पर अपने अपने पिंजड़े में
क़ैद रहकर
यह कैसे संभव था ?
हम अपने ही
पिंजड़ों की सलाखों  से
टकराते रहे
और अपने- अपने
ज़ख़्म लेकर
फिर लगे चुगने
अपना अपना दाना
अपने - अपने पिंजड़े में !
# राजेश पाण्डेय

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