ठोकर तुम्हारी थी :
( इरादतन ना सही पर सम्भावनाओं का ज्ञान तो तुम्हे भी था । )
और ज़ख़्म मेरे ।।
( और ये स्वाभाविक भी है । )
पर मेरी कराह भी तुम्हें ;
मुख़ालफ़त का भ्रम देती है ।
अब त्यौरियाँ तुम्हारी हैं :
और सदमा मेरा ।।
गोया कि मैं
दर्द के अलग अलग निशाने पर हूँ ।
और तुम्हे आजमाने हैं :
शिकायतों के अनगिनत तीर ।।
#राजेश पाण्डेय
( इरादतन ना सही पर सम्भावनाओं का ज्ञान तो तुम्हे भी था । )
और ज़ख़्म मेरे ।।
( और ये स्वाभाविक भी है । )
पर मेरी कराह भी तुम्हें ;
मुख़ालफ़त का भ्रम देती है ।
अब त्यौरियाँ तुम्हारी हैं :
और सदमा मेरा ।।
गोया कि मैं
दर्द के अलग अलग निशाने पर हूँ ।
और तुम्हे आजमाने हैं :
शिकायतों के अनगिनत तीर ।।
#राजेश पाण्डेय
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