*सिसकियाँ*
जीवन
यत्न और यातनाओं
उत्सव और पीड़ा
से परे भी
अनेक यात्राएँ करती है ।
उनमे से
एक यात्रा होती है
ध्वनि की :-
किलकारी से फूटते
जीवन के प्रथम नाद से
चीत्कार और रुदन
के समापन तक
जीवन
ध्वनि तरंगों की एक
मुसलसल यात्रा है ।
इनमें से सबसे तन्हा
उपेक्षित यात्रा होती है
सिसकियों की यात्रा !!
भरी महफ़िल में
किसी अपने की
फब्तियों पर
नकली हँसी में
ज़िंदा दफ़्न होती
सिसकियाँ !!
बच्चों के आगे
अपमानित होकर
अंगीठी की आँच में
सुलगती सिसकियाँ !!
छले जाने के बाद
बन्द कमरे में
तकिए से गला घोंटती
सिसकियाँ !!
अफ़सोस और पश्चाताप
की चिता में
निरन्तर धधकती
सिसकियाँ !!
ये सिसकियाँ
स्पर्श की
मोहताज होती हैं
और जब कभी
अपने भीतर ही
किसी अनुभूति का
स्पर्श पाती हैं :-
तब फूट पड़ती हैं
कविता , ग़ज़ल , लेख
की शक्ल में
अनहद से स्वर बनकर ।
# राजेश पाण्डेय
जीवन
यत्न और यातनाओं
उत्सव और पीड़ा
से परे भी
अनेक यात्राएँ करती है ।
उनमे से
एक यात्रा होती है
ध्वनि की :-
किलकारी से फूटते
जीवन के प्रथम नाद से
चीत्कार और रुदन
के समापन तक
जीवन
ध्वनि तरंगों की एक
मुसलसल यात्रा है ।
इनमें से सबसे तन्हा
उपेक्षित यात्रा होती है
सिसकियों की यात्रा !!
भरी महफ़िल में
किसी अपने की
फब्तियों पर
नकली हँसी में
ज़िंदा दफ़्न होती
सिसकियाँ !!
बच्चों के आगे
अपमानित होकर
अंगीठी की आँच में
सुलगती सिसकियाँ !!
छले जाने के बाद
बन्द कमरे में
तकिए से गला घोंटती
सिसकियाँ !!
अफ़सोस और पश्चाताप
की चिता में
निरन्तर धधकती
सिसकियाँ !!
ये सिसकियाँ
स्पर्श की
मोहताज होती हैं
और जब कभी
अपने भीतर ही
किसी अनुभूति का
स्पर्श पाती हैं :-
तब फूट पड़ती हैं
कविता , ग़ज़ल , लेख
की शक्ल में
अनहद से स्वर बनकर ।
# राजेश पाण्डेय
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