*प्रतीक्षा*
प्रतीक्षा :
अब
एक शापित सम्मोहन है !
एक ऐसी उम्मीद
जो उड़ान चुक गयी है !
एक ऐसा स्वप्न
जो श्रृंगार छोड़ चुका है !
प्रतीक्षा :
अब
हाशिए पर सरकता
एक चेतना शून्य सफ़र है !!
पर ये
अपने शैशव काल में
उम्मीद के पँखों पर
वाचाल थी !
तब
इसकी देह को
ब्रह्माण्ड का विस्तार था !
तब
ये दौड़ती थी
ऐसी गर्म रक्त शिराओं पर
जो ज्वालामुखी का तेज़
निगल जाएँ !
तब
हृदय की धमनियाँ
भूचाल का कम्पन
समेट लें !
आँखें
चाँद को
पलकों से थपथपा दें !
स्मृति के सम्मोहित पट
तब मुस्कान की
मीठी दहलीज़ पर ही
खुलते थे !!
पर जैसे धीरे-धीरे
उम्र बढ़ती है
बिना प्रयास के !
प्रतीक्षा भी
ढलती जाती है
मरती जाती है
धीरे-धीरे
बेबस
बिना यत्न के !!
# राजेश पाण्डेय
प्रतीक्षा :
अब
एक शापित सम्मोहन है !
एक ऐसी उम्मीद
जो उड़ान चुक गयी है !
एक ऐसा स्वप्न
जो श्रृंगार छोड़ चुका है !
प्रतीक्षा :
अब
हाशिए पर सरकता
एक चेतना शून्य सफ़र है !!
पर ये
अपने शैशव काल में
उम्मीद के पँखों पर
वाचाल थी !
तब
इसकी देह को
ब्रह्माण्ड का विस्तार था !
तब
ये दौड़ती थी
ऐसी गर्म रक्त शिराओं पर
जो ज्वालामुखी का तेज़
निगल जाएँ !
तब
हृदय की धमनियाँ
भूचाल का कम्पन
समेट लें !
आँखें
चाँद को
पलकों से थपथपा दें !
स्मृति के सम्मोहित पट
तब मुस्कान की
मीठी दहलीज़ पर ही
खुलते थे !!
पर जैसे धीरे-धीरे
उम्र बढ़ती है
बिना प्रयास के !
प्रतीक्षा भी
ढलती जाती है
मरती जाती है
धीरे-धीरे
बेबस
बिना यत्न के !!
# राजेश पाण्डेय
No comments:
Post a Comment