Sunday, 1 May 2016

तड़प आँसुओं की

तड़प आँसुओं की , मुहताज कब हुई ।
दिल के टूटने पर , आवाज़ कब हुई ।।
तुझको कहाँ ख़बर कि हम बेचैन बहुत हैं ;
दिल के इस हालात पर , बात कब हुई ।।
अपने ही ज़ख़्म पे हूँ मलता , लाचारियों का नमक ;
पर ऐसे किसी वक़्त , मुलाकात कब हुई ।।
झुलसी हो ज़मीं जैसे , फटते हैं होंठ प्यासे ;
सहरा के मुसाफ़िर पे , बरसात कब हुई ।।
                   
                              # राजेश पाण्डेय

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