-: हिमालय का दर्द:-
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सैलाब का मंज़र है , लाशें जहाँ - तहाँ रे !
उफ़नते आँसुओं , से आस्माँ निहारें !!
कुछ ग़लतियाँ हमारी , कुछ तल्ख़ियाँ तुम्हारी ;
क़ुदरत का जो क़हर हो , पर आस्था से हारे !!
मेरी इल्तिजा है तुझसे , गर मेरा गुनाह ठहरा ;
बच्चों को " लाश " ना कर , आबरू बचा रे !!
आस्माँ से आये कुछ हाथ फरिश्तों के ;
कुछ नोचते हैं लाशें , चौखट पे ही तुम्हारे !!
" दर्शन " को सब यहाँ थे , क्या ये भी ख़ता ठहरी ?
ये कैसा न्याय तेरा ? पूछते हैं सारे !!
# राजेश पाण्डेय
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सैलाब का मंज़र है , लाशें जहाँ - तहाँ रे !
उफ़नते आँसुओं , से आस्माँ निहारें !!
कुछ ग़लतियाँ हमारी , कुछ तल्ख़ियाँ तुम्हारी ;
क़ुदरत का जो क़हर हो , पर आस्था से हारे !!
मेरी इल्तिजा है तुझसे , गर मेरा गुनाह ठहरा ;
बच्चों को " लाश " ना कर , आबरू बचा रे !!
आस्माँ से आये कुछ हाथ फरिश्तों के ;
कुछ नोचते हैं लाशें , चौखट पे ही तुम्हारे !!
" दर्शन " को सब यहाँ थे , क्या ये भी ख़ता ठहरी ?
ये कैसा न्याय तेरा ? पूछते हैं सारे !!
# राजेश पाण्डेय
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