कुछ अनकही सी !!
तुम मेरी सारी शंकाओं का समाधान हो
जीवन के प्रतिविचलित होती आस्था
और जज़्बात की पाकीज़गी पर
डगमगाती निष्ठा का
तुमसे सुंदर विराम हो नहीं सकता !!
तुम्हारे सानिध्य के
विचार मात्र से
जीवन की चढ़ती दुपहरी का
एक नया स्वप्न बुनने बैठा हूँ !!
बेबाक धड़कनों
और सकुचाते होठों
से अलहदा
तुम सांझ का विश्राम हो !!
तेरे साथ जीवन के
आखरी सफ़र का एहसास
यूँ है मानो
जिस्म ने
आत्मा से पनाह माँगा हो !!
और बड़ी मासूमियत से ;
अवचेतन में
अमर हो जाना चाहता हो !!
तुम साथ हो
तो यह अमरत्व भी संभव है !!
तुम साथ हो तो अब सब संभव है !!
# राजेश पाण्डेय